वाराणसी के केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ में 'राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों का महत्व' विषय पर एक दिवसीय व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रोफेसर अनिल कुमार दुबे (प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, बीएचयू) ने कहा कि किसी देश का प्रतीक चिन्ह अपने सम्पूर्ण संस्कृति को समाहित किये रहता है। इन प्रतीक चिन्हों में शौर्य,पराक्रम के साथ-साथ शांति, सद्भावना और अध्यात्मिक मूल्यों की पराकाष्ठा समाहित होती है। ये प्रतीक हमें सदैव प्रेरणा और ऊर्जा देते हैं। उन्होंने बताया की भारत में प्रतीक चिन्हों की शुरुआत भगवान बुद्ध के अनुयायियों द्वारा शुरू किया गया तभी से प्रतीक चिन्हों का प्रचलन शुरू हुआ। आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तब प्रतीकों का महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि प्रतीक ही हमें अपने मूल्यों को संरक्षित रखने की प्रेरणा देते हैं।व्याख्यान के विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रोफेसर रामसुधार सिंह (पूर्व विभागाध्यक्ष,यूपी कालेज, वाराणसी) ने कहा कि प्रतीक परम्परा के रूप में हमारे सामने आते हैं।इन प्रतीकों में एक गहराई है जो जनमानस के आस्था का विषय है। राष्ट्रीय प्रतीक भारत के राष्ट्रीय पहचान का आधार है।ये प्रतीक भारतीय नागरिकों के दिलों में देशभक्ति और गर्व की भावना को महसूस कराता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में जहां मूल्य और बोध समाप्त होते जा रहे हैं तब अपने विरासत को समझने की और जरूरत है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के कुलपति प्रोफेसर गेशे नवांग समतेन ने कहा प्रतीकों से भाव जन्म लेते हैं और यही भाव, भावनाओं को जन्म देते हैं तथा भावनाओं से प्रेरित होकर कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। भारतीय संस्कृति की पहचान सम्पूर्ण मानव जाति को साथ लेकर चलने की रही है। इन प्रतीकों में मानव का कल्याण निहित है। कोई राष्ट्र अपने प्रतीकों के कारण ही विश्व में जाना जाता है। प्राचीन काल से भारत करूणा,मैत्री और सद्भावना के प्रतीक के रूप में पूरे विश्व में जाना जाता था। यह सोने की चिड़िया या विश्व गुरु के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता था।जब कोई देश गुलाम होता है,तो यही चिन्ह उसकी राष्ट्रीयता का प्रतीक बनकर उनके संघर्षों को एक गति देता है।
उक्त कार्यक्रम का संचालन श्री राजेश मिश्र ने तथा स्वागत प्रोफेसर उमेश चन्द्र सिंह ने किया। कार्यक्रम की रूपरेखा डा. प्रशांत मौर्य ने प्रस्तुत की तथा अंत में संस्थान के सहायक कुलसचिव प्रमोद सिंह ने सबका धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में डॉ.रामजी सिंह, डॉ.अनुराग त्रिपाठी, डॉ सुशील कुमार सिंह, डॉ.शुचिता शर्मा, डॉ.महेश शर्मा, डॉ.अनिर्वान दास सहित सैकड़ों की संख्या में छात्र-छात्रायें मौजूद रहे।