रामलीला और रामलीला का मंचन भारत सहित पूरे विश्व मे होता है। अलग अलग जगहों पर इसके विविध स्वरूप देखने को मिलते हैं। लेकिन काशी में स्थित रामनगर की रामलीला इन सबमे अद्वितीय है। रामनगर की रामलीला अनुशासन और परम्परा का पर्याय है। यह मात्र मंचन न होकर एक अनुष्ठान है। वस्तुतः यहां की रामलीला का प्रारंभ अंनत चतुर्दशी से होता है परंतु औपचारिक शुरुआत श्रावण कृष्ण चतुर्थी तिथि से ही हो जाता है। इसी तिथि को सर्वप्रथम गणेश और हनुमान जी के मुखौटे को एक नए पीढ़े पर रखकर उसके एक तरफ ब्रश, बंसुला, कैंची (रामलीला के पुतलों मंच, आदि को रंगने के लिए प्रयोग किये जाने वाले औजार) तथा दूसरी तरफ रामलीला के सम्वाद की पोथी (लाल कपड़े में बंधी) रखी रहती है। से पंचस्वरूपों (राम, सीता, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न) का प्रशिक्षण प्रारंभ हो जाता है। इस महानुष्ठान के लिए संकल्प हेतु राजा के प्रतिनिधि मौजूद रहते है जिनको वैदिक रीति से ब्राह्मणों द्वारा पूजन कर संकल्प दिलाया जाता है। श्री गणेश एवं हनुमानजी के मुखौटे पर पुष्पादि अर्पित कर पूजन किया जाता है। पंचस्वरूपों को तिलक लगाकर पुष्प माला पहनाई जाती है।
ब्रह्माजी के संवाद "ऐ पुत्र तुम मन इच्छित वर मांगो..." होता है। जिसका अर्थ है आज से पोथी पढ़ने का शुभारंभ हो गया। अंत मे श्री गणेश, हनुमानजी और रामचरित मानस तथा संवाद की पोथी के आरती कर प्रसाद वितरण कर इस संक्षिप्त समारोह का समापन होता है।