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गरीब-मजलूमो के लिए कारगर साबित हो रहा है सस्ता जेनेरिक दवा



 03/Jun/22

सुबह -ए- बनारस क्लब ने चलाया जन जागरूकता अभियान।

नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी की ओर से 1, अप्रैल 2022 से अंग्रेजी दवाओं के मूल्यों में 11% की हुई भारी वृद्धी ने बुरी तरह से महंगाई का मार झेल रहे गरीब मरीजों के लिए अच्छी खासी मुश्किलें पैदा कर दी है। ऐसे मुश्किल दौर में प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए वरदान साबित होने वाला जेनेरिक दवा धीरे-धीरे करके आम जनता का ध्यान अपने और आकृष्ट करने का काम कर रहा है। जो की अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले काफी सस्ते दर पर देशभर के 739 जिलो मे 8610 जन औषधि केंन्द्रो पर 1616 उत्पादों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। गुणवत्ता के मामले में यह अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले कहीं से भी कमजोर नहीं है। इन्हीं जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल बिना किसी संदेह के करने की अपील के साथ लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से सामाजिक संस्था सुबह-ए- बनारस क्लब के बैनर तले संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल, समाजसेवी उपाध्यक्ष अनिल केशरी, कोषाध्यक्ष नंदकुमार टोपी वाले के नेतृत्व में बृहस्पतिवार को कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल के बाहर जागरूकता अभियान चलाया गया। उपरोक्त अवसर पर बोलते हुए संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल, समाजसेवी अनिल केशरी एवं कोषाध्यक्ष नंदकुमार टोपी वाले ने कहा कि जब कोई दवा बनती है, तो कई नामी-गिरामी कंपनियां उसको पेटेंट करा लेती है। जिसकी वजह से वह दवा काफी महंगे मूल्य में बाजार में उपलब्ध हो पाती है। वही दवा जब पेटेंट के दायरे से बाहर आती है, और उसी दवा को अन्य कंपनियां जब बनाती है, तो वह दवा सस्ते मूल्य मे जेनेरिक दवा के रूप में बाजार में उपलब्ध हो जाती है। बाजार में वरदान के रूप में आए प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के तहत जेनेरिक दवाओं ने काफी हद तक गरीब-मजलूम आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों और उनके परिजनों को राहत देने का कार्य किया है। जन औषधि केंद्र पर बिकने वाली जेनेरिक दवाओं के गुणवत्ता को लेकर शुरुआती चरण में काफी अफवाहें भी फैलाई गई। मगर वास्तविकता यह है, कि इनकी गुणवत्ता चमकीली- भड़कीली पैकिंग में बिकने वाली अग्रेजी दवाओं से कहीं भी कम नहीं है। कमीशन के चक्कर में फैलाया गए इसके दुष्प्रचार एवं ना जानकारी होने के वजह से लोगों में इसके प्रति जागरूकता में काफी कमी थी। जो कि धीरे-धीरे करके दूर हो रही है। अब इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि जो कोई भी जेनेरिक दवा का इस्तेमाल एक बार कर लेता है, तो उसके बाद उसका रुझान खुद ब-खुद उसकी ओर हो जाता है। वक्ता द्वय ने बताया कि अंग्रेजी एवं जेनेरिक दवाओं के मूल्यों का अन्तर का अंदाजा उदाहरण के तौर पर इसी बात से लगाया जा सकता है, कि जो शुगर का दवा अंग्रेजी के दवा में अगर 180 रुपया प्रति (10 गोली) का पत्ता है। तो वही दवा जेनेरिक दवा में 26 रुपया प्रति पत्ता एंव प्रोस्टेड के रोग में इस्तेमाल होने वाला अंग्रेजी दवा अगर 500 रुपया प्रति पत्ता के ऊपर मिलता है। तो वही दवा जेनेरिक दवा के रूप में 24 रुपया प्रति पत्ता मे उपलब्ध हो जाता है। कार्यक्रम में मुख्य रूप से = मुकेश जायसवाल, अनिल केसरी, नंदकुमार टोपी वाले, नीचीबाग व्यापार मंडल के अध्यक्ष प्रदीप गुप्त, सचिव सुमित सर्राफ, अश्वनी जायसवाल, पारसनाथ केसरी, पंकज पाठक, विजय जायसवाल, सुनील अहमद खान, रवि श्रीवास्तव, पप्पू रस्तोगी, चंद्रशेखर प्रसाद, राजेंद्र अग्रहरि, प्रदीप जायसवाल, राजेंद्र कुशवाहा, बसंत जायसवाल, बबलू सेठ, विजय वर्मा, सहित कई लोग शामिल थे।


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