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सीज़ोफ्रेनिया एक मानसिक विकृति है, इसके ईलाज़ की अवधि अक्सर लंबी होती है : डॉ: श्रेयांश द्विवेदी

दिनेश मिश्र

 12/Apr/22

हमारे जीवन में अक्सर हमारी मुलाकात कुछ मानसिक रोगियों से हो जाती है। हमें जिज्ञासा होती है कि ऐसे रोग का क्या कारण हो सकता है। ऐसा ही एक मानसिक रोग है सिज़ोफ्रेनिया। सिज़ोफ्रेनिया के बारे में जानकारी हेतु क्लाउन टाइम्स रिपोर्टर दिनेश मिश्र ने खास बातचीत की वाराणसी के रविन्द्रपुरी स्थित रवि न्यूरो सायकेट्री सेंटर से डॉ श्रेयांश द्विवेदी से जिसमें उन्‍होंने बताया कि शिजोफ्रेनिया एक जटिल मानसिक बीमारी है इसके लक्षण सायकोसिस के हैं। साइकोसिस व्यक्ति के समूचे व्यक्तित्व को विकृत कर देने वाला एक गंभीर मनोरोग है।

डॉक्टर श्रेयांश द्विवेदी ने बताया कि सिजोफ्रेनिया के मरीजों को वह आवाजें सुनाई देती है जो वास्तव में होती नहीं। उनको यह विश्वास होता है कि वह आवाजें हैं आस-पास ही। इन आवाजों को वैज्ञानिक भाषा में डेलुशन (dellusion) कहते हैं और जो आवाजें सुनाई देती हैं उसे हैलुसिनेशन (Hallucination) कहते हैं। मरीज को लगता है उसके शरीर के किसी भाग पर उसका कंट्रोल हट रहा है और उसे कोई और कंट्रोल कर रहा है। कोई है जो उसके ऊपर नजर रखता है, कोई उसके खिलाफ षडयंत्र रच रहा है।

सीज़ोफ्रेनिया दिमाग की एक विकृति है लेकिन इसका स्पष्ट कारण अभी तक सामने नहीं आया है। एक थ्योरी के अनुसार दिमाग में डोपामिन का लेवल बढ़ जाने से ऐसी विकृति सामने आती है और भी कई न्यूरोट्रांसमीटर इसके जिम्मेदार होते हैं किंतु डोपामिन को प्रमुख रूप से ऐसी मानसिक विकृति के लिए जिम्मेदार माना गया है।

डॉ.श्रेयांश द्विवेदी के अनुसार मरीज का इलाज कई वर्षों तक चलता है। कुछ मरीजों का इलाज जीवन पर्यंत चलता है कुछ मरीज इलाज के बीच में ही ठीक हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि डॉ जॉन नेश को गेम थ्योरी के लिए नोबेल प्राइज मिला था जबकि वे सीज़ोफ्रेनिया के मरीज़ थे। उन्होंने दवाओं के बल पर अपनी बीमारी को कंट्रोल किया जबकि उस समय आज की तरह अच्छी दवाएं उपलब्ध नही थी।

डॉ. श्रेयांश ने कहा कि जैसे शुगर और ब्लड प्रेसर के मरीज़ की दवाएँ लंबी अवधि, क़भी कभी मरीज़ को उम्र भर चलती है पर समाज उसे स्वीकार कर लेता है। लेकिन अभी तक सिजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है इसे आज भी समाज में लोग एक्सेप्ट नहीं कर पाते हैं और पेशेंट को लोग पागल तक समझ कर उससे दूरी बनाते हैं। जबकि इसका इलाज कुछ वर्षों तक चलेगा तो पेशेंट को लाभ मिलेगा और ऐसा भी हो सकते हैं मरीज़ बिल्कुल ठीक हो जाये। समाज में सीज़ोफ्रेनिया के मरीजों के प्रति स्वीकार्यता बढ़ाने की जरूरत है कि ये एक मानसिक बीमारी है,पागलपन नहीं और इसका इलाज लंबा चलता है। सीज़ोफ्रेनिया के मरीज़ के केस में ज्यादा सामने नही आया है। एंग्जायटी डिसार्डर और डिप्रेशन के पेशेंट में तो इसका रोल ज्यादा है लेकिन सीज़ोफ्रेनिया के केस में काउंसेलिंग का उतना रोल नहीं है।


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