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अनियंत्रित ब्लड प्रेसर, शुगर, कोलेस्ट्रॉल, मोटापा एवं स्मोकिंग तथा तम्बाकू सेवन ही हैं हार्ट अटैक के मुख्य कारण : डॉ. विकास अग्रवाल

दिनेश मिश्र

 12/Apr/22

आजकल जीवन की भाग दौड़ में इन्सान जीवन मूल्यों को खोता चला जा रहा है। आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है। हर क्षेत्र में चुनौतियां इन्सान के आगे आगे चलती है। इन्हीं चुनौतियों के पीछे भागते भागते इनसान जाने अनजाने नशे की गिरफ्त में आ रहा है इसके साथ ही अनियंत्रित जीवन शैली, असंतुलित भोजन, जन्म देता है हमारे शरीर मे कई बीमारियों को। ऐसी ही एक बीमारी है कोरोनरी आरटेरी डिसीज़ (Coronary Artery Disease) जिसे हम हार्ट अटैक के रूप में जानते हैं। इस बीमारी के बारे में पूरी पड़ताल के लिये क्लाउन टाइम्स रिपोर्टर दिनेश मिश्र ने वाराणसी के रविन्द्रपुरी स्थित आनन्दी हार्ट एंड मैटरनिटी क्लीनिक के ह्रदय रोग सर्जन डॉ विकास अग्रवाल से की खास बातचीत जिसमें डॉ. विकास अग्रवाल ने बताया कि कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज की वजह से हार्ट अटैक आता है। ब्लॉकेज के मुख्य कारण अनियंत्रित ब्लड प्रेशर, शुगर, कोलेस्ट्रॉल, मोटापा, शारीरिक श्रम की कमी,तंबाकू सेवन और धूम्रपान तथा अनियंत्रित जीवन शैली और कभी कभी फैमिली हिस्ट्री हैं।

डॉ. विकास अग्रवाल ने आगे बताया कि कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज की वजह से एंजाइना पेन होता है। एंजाइना पेन दो तरह के होते हैं पहला जब मरीज को चलने फिरने पर दर्द हो जिसे हम स्टेबल एंजाइना पेन करते हैं। दूसरा मरीज़ को अचानक दर्द होता है दोनों के लक्षण अलग-अलग होते हैं जब मरीज़ सीढ़ी पर चढ़ रहा हो, दौड़ रहा हो या भारी काम कर रहा हो उस समय उसको सीने में दर्द हो। कभी-कभी सीने में दर्द के साथ जबड़ों में दर्द हो, हाथों में कंधों में या पीठ की तरफ जाए तो इसको एंजाइना पेन कहते हैं।

कभी-कभी यह दर्द मरीज को बैठे-बैठे या रात में सोते समय हो जाता है और मरीज को बहुत पसीना आता है उसके साथ ही उल्टी के लक्षण और असहनीय दर्द होता है उस स्थिति को हार्ट अटैक कहा जाता है। कभी-कभी एंजाइना पेन के अलावा पेशेंट को चलने पर सांस फूलती हो और सांस फूलने का कारण ना समझ में आता हो तो यह माना जा सकता है कि पेशेंट की आर्टरीज में ब्लॉकेज है। साधारणतया कोरोनरी आर्टरीज में ब्लॉकेज की स्थिति में सीने में दर्द, जबड़े में दर्द, हाथों में कंधों में यह दर्द घूमता रहता है।

जब मरीज को समझ में आ जाए कि उसके अंदर उक्त लक्षण नजर आ रहे हैं तो मरीज को हृदय रोग विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए और अपनी गहन जांच करवानी चाहिए साधारणतया एक हृदय रोग विशेषज्ञ सबसे पहले मरीज की ईसीजी(इलेक्ट्रोकॉर्डियोग्राम ) की जांच करवाते हैं। यह बहुत ही साधारण और कम खर्च वाला जांच है।दूसरी जांच है इकोकार्डियोग्राफी की जांच हृदय के कार्य करने की क्षमता, हृदय की मांसपेशियों की जांच, हृदय के वाल्व की जांच और हृदय के प्रेशर के बारे में बताता है।

तीसरी या फाइनल जांच है, एंजियोग्राफी जिससे पता चलता है कि ब्लॉकेज या रुकावट एक नस है में या ज्यादा नसों में है। बाई तरफ की नसों में है या दाएं तरफ की नसों में है। मरीज क्या दवाओं से ठीक हो सकता है या एंजियोप्लास्टी करनी है या बाईपास करना है, इस निर्णय को लेने में एंजियोग्राफी एक डॉक्टर की मदद करती है।

एक और जांच होती है जिसे कन्वेंशनल एंजियोग्राफी कहा जाता है जो हाथ या पैरों की नसों से किया जाता है। यह जांच आजकल हाथ की नसों से किया जाता है जो मरीज के लिए बहुत ही समय सुविधादायक और समय की बचत करने वाला है। यह जांच 2 से 3 घंटे में हो जाती है एक और जांच है जिसे सीटी एंजियोग्राफी(C T Angiography) कहा जाता है उस में नसों में कोई पंक्चर नहीं करना होता है कोई हार्ट के वेसेल्स में कैथेटर या वायर नहीं डालना पड़ता है।लेकिन यह जांच सबके लिए नहीं है ।यह जांच उन मरीज़ों के लिए है जहां यह कंफर्म करना मुश्किल है कि पेशेंट को एंजाइना पेन है कि नहीं। साधारणतया कुछ महिला मरीजों में जहां उनके अंदर एंजाइना के लक्षण तो दिखते हैं लेकिन वह कंफर्म नहीं होते वहां सीटी एंजियोग्राफी परफॉर्म किया जाता है।

एंजियोग्राफी से हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.यह पता कर लेते हैं कि पेशेंट को सिंगिल वेसल डिसीज़ है या मल्टीवेसल डिसीज़, पेशेंट को छोटे ब्लॉकेज हैं या बड़े ब्लॉकेज, 70 प्रतिशत के नीचे ब्लॉकेज है या 90 प्रतिशत के ऊपर। एंजियोग्राफी के आधार हृदय रोग विशेषज्ञ निर्णय करते हैं कि मरीज के लिए कौन सा इलाज युक्त रहेगा। मेडिकल मैनेजमेंट, एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी।

एंजियोप्लास्टी का तरीका: डॉ विकास अग्रवाल ने आगे बताया कि एंजियोग्राफी की जांच में पाई गई कमियों को एंजियोप्लास्टी के माध्यम से दूर किया जाता है। नसों में पाई गई ब्लॉकेज को,क्लॉट्स को निकाल कर ब्लॉकेज को बलून से फुलाना फिर उसमें छल्ले डालना जिसे स्टेंट प्लेसमेन्ट बेसमेंट कहते हैं, इस पूरी प्रक्रिया को एंजियोप्लास्टी कहा जाता है।

डॉ. विकास ने आगे बताया कि आज मेडिकल साइंस तरक्की कर चुका है ।आज जो छल्ले प्रयोग किए जाते हैं,वह दवाओं के बने होते हैं। जो मरीज की उम्र भर काम कर सकते हैं ।जिनके बंद होने की संभावना नहीं होती है। आज के समय में 24 घंटे के अंदर मरीज़ को एंजियोप्लास्टी करके डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इसके बाद उसको एंजाइना पेन में जबरदस्त आराम मिलता है।

डॉ. विकास के अनुसार यदि मरीज हार्ट अटैक के बाद आता है तो उसे एंजियोप्लास्टी के बाद हम चार हफ्तों तक पूरी तरह से आराम करने व सावधानियां बरतने को कहते हैं। यदि पेशेंट स्टेबल एंजाइना के साथ आता है तो उसे हम एक दो हफ्तों में नॉर्मल लाइफ रिज्यूम करने के लिए सलाह देते हैं।

डॉ. विकास ने बताया कि जहां तक रिस्क फैक्टर की बात है कोई भी कार्डियक प्रोसीजर को बिना रिस्क हम नहीं कर सकते हैं। रिस्क पेशेंट की कंडीशन पर डिपेंड करता है पेशेंट की जनरल कंडीशन,डायबीटिक कंडीशन किडनी कंडीशन, हेमोग्लोबिन लेवल, वेसेल्स की ब्लॉकेज की कंडीशन। रिस्क को पेरिऑपरेटिव कार्डियक रिस्क कहते हैं जो 5 प्रतिशत होता है जिसे मरीज़ और उनके साथी को एक्सप्लेन करते हैं। बहुत हाई रिस्क वाले पेशेंट विशेषतः डायबीटिक पेशेंट जहां एंजियोप्लास्टी के बहुत अच्छे परिणाम आने की उम्मीद नहीं होती हैं वहां बाईपास सर्जरी को ही रेकमेंड किया जाता है।

डॉ. विकास अग्रवाल ने बताया वाराणसी में एंजियोप्लास्टी प्रोसीजर का कुल खर्च दो भागों में बांटा जा सकता है प्रोसीजर कॉस्ट और स्टेन्ट एंड बलूनी कास्ट कुल मिलाकर के यह 1,15,000 या 1,20,000 तक आता है यदि एंजियोप्लास्टी प्रोसीजर बहुत लंबा है, स्टेन्ट या बलून के नंबर बढ़ रहे हैं तो थोड़ा कॉस्ट बढ़ सकता है।

डॉ. विकास ने आगे बताया कि एंजियोप्लास्टी के बाद मरीज को चाहिए कि अपने डॉ. के बराबर संपर्क में रहें और लिखी गई दवाइयों का सेवन करता रहे। जिससे उसका ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहे,तंबाकू और सिगरेट छोड़ देनी चाहिए। शुगर व कोलेस्ट्रॉल मेंटेन रखना चाहिए और शारीरिक श्रम थोड़ा-थोड़ा करते रहना चाहिए। अगर रिस्क फैक्टर को कंट्रोल में रखा जाए। विशेष रूप से ब्लड थिनर कार्डियोलॉजिस्ट की सलाह से लेते रहते हैं तो स्टेंट बंद होने की संभावना नहीं रहती और उम्र भर अच्छी तरीके से काम करते रहते हैं।


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