MENU

महाश्‍मशान पर धधकती चिताओं के बीच नगर बंधुओं ने किया नृत्‍य



 09/Apr/22

वाराणसी के महाश्‍मशान पर प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष  भी नगर बंधुओं ने आराध्‍य संगीत के जनक नटराज महाश्‍मसानेश्‍वर के समक्ष पूरी रात अपनी प्रस्‍तुति कर दूर-दराज से आये शवयात्रीयों से लेकर दर्शकों को मंत्रमुग्‍ध कर दिया।

बताते चलें कि मोक्ष की नगरी काशी के महाश्‍मशान पर चैत्र नवरात्रि के पंचमी से लेकर सप्‍तमी तक चलने वाले श्री श्री 1008 बाबा महाश्‍मशान नाथ के त्रिदिवसीय श्रृंगार महोत्‍सव के अंतिम दिन 8 अप्रैल को बाबा का सांयकाल पंचमकार का भोग लगाकर तांत्रोकत विधान से भव्य आरती मंदिर के पुजारी लल्लू महाराज द्वारा किया गया, ऎसी मान्यता है कि बाबा को मनाने के लिये शक्ति ने योगिनी रूप धरा था। बाबा का प्रांगण रजनी गंधा, गुलाब, मदार व अन्य सुगंधित फूलों से सजाया गया था। आरती के पश्चात नगर वधुंऔ ने अपने गायन व नृत्य के माध्यम से परम्परागत भावांजली बाबा को समर्पित करते हुए मंन्नत मांगी की बाबा अगला जन्म सुधारे, यह बहुत ही भावपूर्ण दृश्य था जिसे देखकर सभी लोगों की आखे डबडबा गयी।

इस श्रृंगार महोत्सव के बारे में मीडिया से बातचीत करते हुए कार्यक्रम के संयोजक गुलशन कपूर ने कहा कि यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। इसके पीछे ऐसी मानयता है कि राजा मानसिंह द्वारा जब बाबा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था, तब मंदिर में संगीत के लिए कोई भी कलाकार आने को तैयार नहीं हुआ था। हिन्दू धर्म में हर पूजन या शुभ कार्य में संगीत जरुर होता है। इस सांगितिक परंपरा को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुःखी हुए, और यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगर बधुओ तक भी जा पहुंचा तो उन्‍होंने डरते-डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता हैं तो काशी की सभी नगर वधूएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती है। यह संदेश पा कर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और सम्‍मान नगर बधुओं को आमंत्रित किया गया। तभी से यह परम्परा चली आ रही है। वही दूसरी तरफ नगर बधुओं के मन मे यह आया की अगर वह इस परम्परा को निरन्तर बढ़ाती हैं तो उनके इस नारकीय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा फिर क्या था आज सैकड़ों वर्ष बितने के बाद भी यह परम्परा जिवित है और बिना बुलाये यह नगर वधूएं कहीं भी रहें लेकिन चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को वे काशी के मणिकर्णिका धाम स्वयं आ जाती है।

सांगितिक संध्‍या में आये हुए अतिथियों का स्‍वागत मंदिर के अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता ने किया। तत्पश्चात बाबा का रात्रि पर्यन्त चलने वाला जागरण प्रारंभ हुआ जो की जलती चिताऒ के पास मंदिर में अपने परम्परागत स्थान से प्रारंभ हुआ। स्वागत सर्व प्रथम बाबा का भजन दुर्गा दुर्गति नाशिनी, डिमिग डिमिग डमरू कर बाजे, डिम-डिम तन दिन दिन, तू ही तू जगबक आधार तू, ओम नमः शिवाय, मणिकर्णिका स्रोत, खेले मसाने में होरी के बाद दादरा, ठुमरी व चैती लागा चुनरी में दाग छुडाऊं कैसे, घर जाउ कैसे गाकर बाबा के श्री चरणों में अपनी नृत्‍यांजलि अर्पित किया। इसके पश्‍चात काशी के प्रसिद्ध भजनो को अपने सुमधुर गायन ओम मंगलम ओमकार मंगलम, बम लहरी बम-बम लहरी जैसे भजनों से भक्तों को झुमने पर मजबूर कर दिया।

कार्यक्रम में व्यवस्थापक गुलशन कपूर के साथ महामंत्री- बिहारी लाल गुप्ता, उपाध्यक्ष- दिलीप यादव, (पूर्व पार्षद) विजय शंकर पांडेय, राजू साव, संजय गुप्ता, रौशन गुप्ता, विज्जु गुप्ता, बड़कु यादव, मनोज शर्मा, दीपक तिवारी, अजय गुप्ता, रोहित पांडेय, रिकुं कुमार, राहुल पांडेय आदि पदाधिकारी व भक्त शामिल थे।


इस खबर को शेयर करें

Leave a Comment

6951


सबरंग