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शादी की अर्धशती

के. विक्रम राव

 30/Nov/21

मेरे पाणिग्रहण की पचासवीं वर्षगांठ है। स्वर्ण जयंती बिसराई, धुंधली यादें अब हरी हो गयीं, मेघा पर दबाव डाले बिना। लगा मानों आज भोर ही सातवां फेरा लगा था। दक्षिण भारत में ब्रह्म मुहूर्त में ही साइत पड़ती है। अत: नींद का अधूरा रहना सो अलग। अब श्रमजीवी पत्रकार हूं इसलिये अनुष्ठान यदि खबर बन जाये तो यह एक प्रत्याशित घटना ही होगी।

मधुचन्द्र हेतु हम दोनों नैनीताल गये थे। सदा जगमगाता यह पर्वतीय नगर तब घोर अंधकार में था। टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि मार्शल आगा मोहम्मद याहया खान ने भारत पर युद्ध ठाना है। ग्यारह वायुसेना केन्द्रों पर रात बीते बमबारी कर दी। नाम दिया ''आपरेशन चंगेज खान।''

अत: चिरस्मरणीय हो गया हमारा वह पाणिग्रहण का दिन। उसी बेला पर ही युद्ध हुआ था, दो पड़ोसियों में। जब तक हम वापस लखनऊ लौटे, पाकिस्तान का जुगराफिया ही बदल गया था। आजाद बांग्लादेश बन गया। मोहम्मद अली जिन्ना का मजहब को राष्ट्र की बुनियाद मानने वाला फलसफा चूर हो गया। अत: शादी की तिथि हमारी ऐतिहासिक बन गयी।

अगली घटना हुयी चार वर्ष बाद 1975 में। डाइनामाइट वाले षड़यंत्र में राजद्रोह के अपराध में बड़ौदा जेल में मेरी चौथी सालगिरह बीती। तन्हा कोठरी में, हथकड़ी में बंधे। सीबीआई ने पक्का मुकदमा रचा। अर्थात सजा में फांसी थी। चार साल में ही पत्नी का वैधव्य बदा था। मैं तो जेल में रहा। वह बाहर थी मगर इब्तिदा वियोग से हुयी। विरह से। बड़ौदा मण्डल रेलवे अस्पताल से डा. सुधा का तबादला कामलीघाट डिस्पेंसरी (राजसमंद, राजस्थान) कर दिया गया। पांच सौ किलोमीटर दूर। वीरान था। वहां पानी पीने चीता आता था। किन्तु हम आभारी रहे पश्चिम रेल (चर्चगेट) के सीएमओ डा. अमर चन्द के। उन्होंने आदेश बदला। पाकिस्तान सीमा पर रेगिस्तानी कच्छ (गांधीधाम) भेज दिया। तनिक गनीमत रही। हम दंपति कठोर सीबीआई के अगले कदम की प्रतीक्षा में थे। एक दिन दो अफसर मेरी तनहा कोठरी में पधारे। वे बोले : ''सरकारी गवाह बन जाओ। जार्ज फर्नांडिस के खिलाफ गवाही दो। सजा माफ हो जायेगी। वर्ना, डा. सुधा राव यहीं दोनों बच्चों के साथ जेल में ला दी जायेंगी।''

मैं सिहर उठा। हिल गया। मामूली रिपोर्टर ठहरा। हालांकि महाराणा प्रताप के राजपूतों के शौर्यभरे किस्से पढ़े मात्र थे। मैंने सीबीआई से कहा '' पत्नी से पूछ लूं।'' दो दिन बाद शनिवार को सुधा गांधीधाम से बड़ौदा जेल मिलने आई। बताया उसे। वह बोली : ''जेल में रोटी सेकूंगी। साथी (जार्ज) के साथ गद्दारी नहीं करोगे।'' अगले दिन सीबीआई का मेरा नितांत सादा उत्तर था जो सुधा ने कहा था। ''भाड़ में जाओ।''

मुझे बड़ौदा सेन्ट्रल जेल से मुम्बई जेल, बेंगलूर जेल और अन्तत: दिल्ली के तिहाड़ जेल (वार्ड 17) में डाल दिया गया। बड़ौदा सीबीआई ने पहला काम किया था कि मेरे दैनिक समाचार-पत्र रुकवा दिये थे। मानों मछली का पानी बंद कर डाला। स्वयं सेवक (आरएसएस) का एक युवा मुझे अखबार रोज दिया करता था। उसने अचानक आना बंद कर दिया। बाद में पता चला कि उसका नाम था नरेन्द्र दामोदरदास मोदी। फिर तो चलता ही रहा लगातार यातनाओं का सिलसिला।

तिहाड़ में कष्टानुभूति कुछ घटी। वार्ड नम्बर-17 में 25 सहअभियुक्त थे। जार्ज के अलावा गांधीवादी प्रभुदास पटवारी और वीरेन्द्र शाह थे। दोनों बाद में तलिमनाडु तथा पश्चिम बंगाल के राज्यपाल नियुक्त हुये थे।

 


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