कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय राय तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विजय शंकर पाण्डेय व सतीश चौबे ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए शासन के निर्देश से 14-15 जून की रात दो बजे पूर्व विधायकगण राजेशपति त्रिपाठी एवं ललितेशपति त्रिपाठी सहित 41 लोगों पर मिर्जापुर के मडिहान थाने में अपराधिक एफआईआर दर्ज करवाया,वह पूर्णत असत्य,आधारहीन तथ्यहीन व कल्पित कहानी पर शुद्ध राजनीतिक दुर्भावना की कार्रवाई है। निहित उद्देश्य के राजनीति मंसूबे के लिये दबावव भयादोहन द्वारा एक ऐसे प्रतिष्ठित परिवार को बदनाम एवं प्रताडित करना है, जिसकी आजादी की लड़ाई,उसके बाद चार पीढ़ी की बेदाग लोकतांत्रिक रानीति एवं जनसेवा तथा सनातन पाण्डित्य की परंपरा से जुड़ी रही पारिवारिक साख की साफ सुथरी प्रतिष्ठा का लंबा इतिहास रहा है।
आज पराड़कर स्मृति भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता के बीच कांग्रेस के इन नेताओं ने कहा कि प्रतिष्ठित त्रिपाठी परिवार ने एक इंच भी जमीन पर न तो विधि विरुद्ध कोई कब्जा किया है और ना कोई विधि विरुद्ध काम। भूमि गोपालपुर सहकारी समिति लि.की है जिसे वर्ष 1951 में तत्कालीन जमींदार अमरेश चंद्र और नरेश चंद्र ने पंजीकृत इस्तमरारी पट्टे के माध्यमसे समिति सदस्यों को बेचा,जिसे उसी वर्ष गोपालपुर संयुक्त सहकारी कृषि समिति लिमिटेड नाम की सोसायटी में समाहित किया गया। वह समिति एवं भूमि आज तक पूर्ण विधिसम्मति ढंग से यथावत है,जिसका लगान हर वर्ष समिति सरकार को देती है। सहकारिता की स्थापित विधियों के अनुरुप समिति का है। हमेशा सरकारी पर्यवेक्षक के सामने होता है और सरकारी सहकारी विधान के मानकों पर काम करती है।
कांग्रेस नेताओं ने बताया कि 1971-72 में मूल पट्टाधारकों के उत्तराधिकारियों में से कुछ ने 229 बी. के तहत राजस्व रेकार्ड खतौनी में अपना नाम अंकित करवा लिया था। उसके विरुद्ध समिति खुद हाई कोर्ट गई थी। वहां समिति के पक्ष में निर्णय देते हुये अदालत ने 229 बी. में दर्ज सभी नाम अवैध ठहराये और हटा दिये। जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि ऐसे सभी अवैध कब्जे खाली करा कर समिति के अधीन सौंपें जांय। इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपीलें भी खारिज हुईं, हाईकोर्ट का निर्णय कायम रहा और आज भी है।
शासन का तेवर दो वर्ष पूर्व सोनभद्र में ऊंभा कांड, उसे लेकर कांग्रेस के आन्दोलन एवं उसमें ललितेशपति त्रिपाठी की सक्रिय भूमिका से योगी सरकार की नाराजगी के बाद बदला। कहा गया कि आन्दोलन छोड़ राजनीतिक पाला बदलो नहीं भुगतो। रेणुका चौधरी की एक जांच समिति सहकारी कृषि फार्म पर गठित हुई। उसे सभी न्यायिक निर्णयों तथा विधिसम्मत कामकाज के हर रिकार्ड दिखाये गये और उनकी सारी आशंकाओं का विधि सम्मत समाधान किया गया। फिर भी जांच समिति ने राजनीतिक दबाव में समिति के विरुद्ध आधारहीन आरोप लगाये। उसकी रिपोर्ट को दी गई चुनौती हाई कोर्ट विचाराधीन है।
आम चुनाव निकट आता देख अचानक दो साल के बाद उसी रेणुका चौधरी कमेटी को आधार बना कर राजनीतिक द्वेष-भाव से मुख्यमंत्री के दबाव पर सक्रिय प्रशासन ने प्राथमिकी करा दी।
आधिकारिक हैंडल पर सोसायटी के सदस्यों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने का मैसेज करके राजनीति प्रेरित मंसूबे एवं नीयत का परिचय दे दिया है। बात यह भी है कि पी. सी.एस. रैंक का अधिकारी ए.आर. अपने एफ.आई.आर. के पत्र में यह धृष्टता भी व्यक्त करते हैं कि वर्ष 2010 में माननीय उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का कोई अर्थ नहीं, क्यों कि वे विधि सम्मत नहीं है। अदालतें इस अवमानना पर समय पर गौर करेगीं, लेकिन राजनीतिक अपराधीक उत्पीडन एवं भयादोहन का एक नये अध्याय का खेल सरकार ने शुरू कर दिया है। हम न केवल उसकी कड़ी निन्दा करते हैं, बल्कि स्पष्ट करते हैं कि जरूरी होने पर इसके विरुद्ध जनान्दोलन भी किया जायेगा। कुल मिला कर इस पूरे मामले में औरंगाबाद हाउस के पक्ष पूर्व विधायक अजय राय, कांग्रेस वरिष्ठ नेता विजय शंकर पाण्डेय, सतीश चौबे आदि ने सूबे की योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।