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हम सुधरेंगे जग सुधरेगा



 21/May/21

हमारी जिंदगी शायद हमेशा के लिए बदलने के कगार पे खड़ी

दिसंबर 2019 एक साधरण सा महिने जैसा ही था। सुबह 10 से साम 5 तक का ऑफिस और उसके बाद घर, परिवर, दोस्त, रिश्तेदार और हमारी सुकून भारी (शायद) जिंदगी, हम इससे खुश भी थे और और बहूत कुछ पाने की चाहत भी थी। तब शायद ही दुनिया की 8 अरब की आबादी में से किसी ने भी ये सोचा होगा कि हमारी जिंदगी है वो शायद हमेशा के लिए बदलने के कगार पे खड़ी है, और हमारी उस जिंदगी को पूरी तरह उथल पुथल करने की शुरुवात दुनिया के एक कोने में शुरू भी हो चुकी थी एक अदने से ना दिखाई देने वाले वायरस और उससे फैली बीमारी के रूप में।

चीन देश का वुहान शहर, यही वो जगह थी जहां से निकली एक बीमारी आने वाले समय में धरती पे रहने वाले हर एक मनुष्य के जीवन को पूरी तरह झकझोर देने को तैयार थी। वो बीमारी जिसको हमें बताया गया की Corona Virus से फैलती है और उसका नाम Covid-19रक्खा गया जो कि "Coronavirus Disease Of 2019" संक्षिप्त रूप है। खैर मैं इस विवाद से दूर ही रहूंगा की इसकी उत्पत्ति कैसे हुई लैब में अथवा चमकादड़ से, और वैश्विक राजनीती को देखते हुए शायद ही इसका जवाब हमें कभी नसीब हो पाए।

ख़ैर दिसंबर के अन्त तक इसकी आहट तो समूचे विश्व को हो गई थी परन्तु इसका व्यापक रूप हर देश में अलग अलग समय पे पता लगने वाला था। भारत की सरकार और भारतीय नागरिकों ने इसको शायद बहुत देर से समझा और समझा भी की नहीं इस परीक्षा का परिणाम शायद अभी पूर्णतः अना बचा है। चीन के बाद फ़रवरी 2020 तक समूचे विश्व में ये वायरस फैलाव फैल चुका था और सरकार तथा शक्ति और राजनैतिक धारणा के अन्तर्गत इसकी रोकथाम करने के जुगत में भी लग चुके थे। भारत में भी इसी समय इस वायरस ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली थी परंतु हम भारतीय है, सही समय पे सही काम हमने कभी किया है जो अब करते। ख़ैर भारत सरकार मार्च-2019 की शुरूवात में जगी और रोकथाम की व्यापक कार्यवाही शुरू कर दी गई, जिसका असर शायद बहुत व्यापक नहीं रहा जिसके फलस्वरूप सरी दुनिया के तौर तरीको को भांपते हुए अंतोगत्वा 24 मार्च 2020 को संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा माननिय प्रधानमंत्री जी ने कर दी जो कि 31 मई 2020 तक पूर्ण रूप से रहा फिर चरण बद्ध तरीको से उसे हटाया गया।

अब लॉकडॉउन से क्या हासिल हुआ क्या नहीं ये राजनैतिक और सामाजिक विष्लेषण का विषय आने वाले कई दशकों तक बना रहेगा और निर्भर इस बात पर करेगा कि हम किस रंग के चस्मे से उसे देखेंगे। अब आप के मन में ये प्रश्न होगा की अगर मुझे कोई बात पूर्णतः रखनी ही नहीं तो इतना लम्बे ज्ञान का क्या फायदा ये सारा ज्ञान तो सब को पता ही है! जनाब आप शत प्रतिशत सही है, ऊपर जो लिखा है वो इतिहास और इतिहास से हम सब वाकिफ है। इतनी भूमिका बांधने से मेरा उद्देश्य महज इतना है कि क्या हमने उस बीते हुए इतिहास जिसे हमने जिया है उससे कुछ सीखा भी या वो इतिहास भी महज किताबो पे सजने के लिए और राजनीती करने के लिए रहा।

स्पेनिश दार्शनिक George Santayana की एक कहावत है "Those who cannot learn from history are doomed to repeat it" अर्थात् "जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते वे उसे दोहराते है और दोहराते दोहराते बर्बादी के लिए अग्रसर होते है। "

अब आप सब जरा एक बार आत्मावलोकन करिए और सोचिए क्या हमने एक देश के रूप में एक समाज के रूप में या एक व्यक्ति के रूप में हमने अपने बीते हुए एक साल से कुछ सबक लिया ? ख़ैर व्यक्ति के रूप में मै तो यह कह सकता हूं की बहुताय लोगो ने इससे बहुत कुछ सीखा और तदानुसार अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाया। पर ये शर्म की बात है कि समाज और देश के रूप में हम पूर्णतः विफल रहे है जिसके परिणामस्वरूप आज हम आएदिन नए नए रिकॉर्ड बना रहे है।

अब आप में से कई लोग ये कहेंगे कि ये सरकार की विफलता है जो कोरोना के इतने केस बढे, और मै आप की इस बात का समर्थन करता हूं परन्तु फिर वही बात मेरे मन में आती है कि समाज से मनुष्य बनता है कि मनुष्य से समाज और जो ये बीमारी फैल रही है ये मनुष्य से मनुष्य में फैल रही है या सरकार से मनुष्य में। बस यहीं शायद एक व्यक्ति के रूप में हमने इस बीमारी को समझने में गलती कर दी जिसका खामियाजा बहूतायाओ को अपनी जान देके चुकानी पड़ी है।

क्या सरकार ही जब लॉकडाउन लगाएं तभी हमें घर में रहना चाहिए था, जब मस्क के लिए टोका जाए तभी मस्क पहान्ना चाहिए था। शायद इस बीमारी से बचने का प्रथम नियम "दो गज दूरी, मस्क है जरूरी" ही था, है और रहेगा परन्तु इसका जो मखौल बनाया गया उसका ही परिणाम है जो हम सब आज भोग रहे है। अगर लाकडाउन ख़तम होने के बाद हम थोड़े सजग रहते तो ये स्थिति तो किसी सूरत में ना होती। सच बताऊं तो रूह काप जाती है जब ये पता चलता है कि ऑक्सीजन, कोई एक दवा और अस्पताल में जगह ना होने के कारण लोगों की मौत हो रही है, हर शहर में शमशान में लाइने लगी हुई है, साईकिल से लोग अपने परिजनों के शावो को ढो रहे हैं, देश के किसी कोने पे लाश के ऊपर लाश रख कर दाह संस्कार करा जा रहा है।

साहब टेलीविज़न और बाकी जगह से दृश्यों के देख के आत्मा तक रो देती है और राज्य एवम् केंद्र सरकार के लिए श्राप निकलता है और प्रश्न उठता है कि क्यों हमारी तंत्र इतना लचर क्यों हमारी सेवाएं इतनी अक्षम है कि एक मरीज को हस्पताल में बेड और एक म्रत व्यक्ति को सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार तक नहीं दे पा रहे है हम, क्या ऐसे ही हम विश्व गुरु, महाशक्ति और ना जाने क्या क्या बनने निकले थे! शायद नहीं। ये वाजिब है कि राज्य और केन्द्र सरकार अगर सही समय पे सही कदम उठाती तो मरीजों को अस्पताल और मृतकों को सम्मान पूर्वक अंतिम विदाई नसीब हो पाती।

इन सब के उप्पर एक चीज हम आप भूल जाते है कि सरकार अस्पताल, दवा आदि तो प्रबन्ध तो कर सकती थी, पर क्या हम आप ऐसे प्रयोजन नहीं कर सकते थे कि ये बीमारी इतनी भैवाह स्थिति में पहुंचती ही नहीं। अगर भारत का हर एक व्यक्ति बीते इतिहास से सीखता और सरकार द्वारा घोषित प्रोटोकॉल को मानता तो ये स्थिति कभी होती ही नहीं। आप स्वयं सोचिए अगर हर एक व्यक्ति खुद का ध्यान रखता तो क्या ये स्थिति कभी होती, हमें सिर्फ इतना ध्यान रखना था कि हमें बीमारी ना हो अगर हो गई तो हमसे किसी और को ना हो, बस इतना सा काम था जिसमें हम पूर्णता विफल रहे।

हमरे देश की ये विडम्बना ही है कि हम दूसरो से बहुत कुछ प्रोटोकॉल करते है पर खुद कुछ करने के लिए तैयार नहीं होते। हर चीज की जिम्मेारियों से भागना है हमें, हम सरकार को तो बहुत कोस लेते है पर अपनी गलतियों पे कभी नजर नहीं डालते, और इन्हीं कमियों के चलते आज इस भयवाह स्थिती से हमें रूबरु होना पड़ रहा है।

अन्त में मै आप सब से यहीं कहना चाहता हूं कि एक व्यक्ति से समाज, समाज से शहर, राज्य और देश बनता है अतः आप सब से हाथ जोड़ के निवेदन है कि आप सब अपने आप को बचाएं, आप बचेंगे तो आप का परिवार बचेगा, परिवार से समाज, समाज से शहर, शहर से राज्य, और इसी तरह से पूरा देश और विश्व। बचपन में पढ़ी पंक्तियां याद आ गई "हम सुधरेंगे जग सुधरेगा" इसी मंत्र के साथ "हम स्वस्थ रहेंगे जग स्वस्थ रहेगा" को पूर्ण करना पड़ेगा और एक से अनेक तक फैलने वाली इस बीमारी को एक से अनेक तक ही इसकी रोकथाम करनी पड़ेगी। कोरोना से लड़ाई अभी बहुत लंबी है हमें थकना नहीं है हारना नहीं है, इससे लड़ते रहना है इसे लड़ने का तरीका वही पुराना वाला मस्क, दो गज की दूरी अनावश्यक घर से न निकालना ही है।

आप सब से उम्मीद है कि इतिहास और मेरी बातो से आप सबक लेंगे और इस बीमारी को ख़तम करने में समुचे विश्वा और भारत का साथ वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के साथ देंगे।

 


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