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बिहार चुनाव में पैराशूट के सहारे अवरोहित हुये सभी उम्मीदवार पराजित हो गये

के. विक्रम राव, वरिष्ठ पत्रकार

 16/Nov/20

इस चुनाव में एक परिणाम अच्छा हुआ कि पैराशूट के सहारे अवरोहित हुये सभी उम्मीदवार पराजित हो गये। एक एक्टर थे शत्रुघ्न सिन्हा। अटलजी की कैबिनेट में मंत्री थे। उनके युवा पुत्र लव सिन्हा सोनियाकांग्रेस के प्रत्याशी बनकर पटना में बांकीपुर से लड़ गये। बुरी तरह हार गये। इनकी मां पूनम सिन्हा लखनऊ से गत लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार थी। उनकी जमानत ही जब्त हो गई थी। अर्थात् सब बड़े खानदानी लोगों को बिहार के मतदाता ने धिक्कार दिया।

कुछ बातें देश के नये, नौसिखिये नेता चिराग पासवान के लिए भी। वही पैराशूटी प्रवृत्ति। राजीवपुत्र राहुल गांधी टाइप। अपनी मां श्रीमती रीना शर्मा, जो पूर्व में एअर होस्टेस रहीं, का आशीर्वाद लेकर चिराग (लोकजनशक्ति पार्टी) की मार्फत मैदान में आ गये। सीमित मकसद था कि पिता के शत्रु नीतीश कुमार को हानि पहुंचाना। अत्यन्त सफल रहे। हालांकि उनका केवल एक ही विधायक चुना गया। वह भी मात्र 133 वोटों से! अब प्रधानमंत्री को सोचना पड़ेगा कि भीतरी शत्रु को कब तक बर्दाश्त करें? चिराग पासवान फिर फिल्मी अभिनय में लौट सकते हैं। जहां वे थे।

इस चुनाव में एक दिलचस्प बात हुयी। मुस्लिम मतदाताओं का वोट एकजुटता से पड़ता था। मिल्लत के फतवे पर। इस बार सीमांत अंचल से लालू यादव के पारम्परिक (मुस्लिमयादव) वोट बैंक की तरफ से लोग लड़े। मगर हैदराबाद के इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सलाउद्दीन औवैसी ने इन कट्टर मजहबियों के विरूद्ध किशानगंज क्षेत्र से अपने प्रत्याशी खड़े कर दिये। उनके पांच लोग जीत गये। हानि हुयी सोनियाकांग्रेस के प्रत्याशियों को। अब्दुल बारी सिद्दीकी कांग्रेसी पराजितों में खास रहे।

इस बार सत्ता न पाने का बड़ा मलाल इस लालूराबडी यादव कुटुम्ब को अवश्य रहेगा। पांच वर्ष बीत जाने के बाद सोचा होगा कि इस दफा राजकोष सुगमता से पा जायेंगे। सारे अभाव दूर हो जायेंगे। यूं चारा घोटाले में सम्पत्ति तो काफी लम्बी थी। पर दो दशक हो गये थे। दस लाख नौकरियों का वायदा इसी संदर्भ में उल्लेखनीय है। किन्तु बात बनी नहीं।

एक त्रासदी और। चुनावी अभियान में तेजस्वी चीखते थे कि नौ नवम्बर के दिन दो शुभवार्तायें आयेंगी। उनके 31वें जन्मदिन के जलसे पर मुख्यमंत्री पद का शपथ ग्रहण करना और लालू यादव की जमानत पर रांची जेल से रिहाई भी इसी दिन होनी थी।

चुनाव में जीतते तो शपथ होता। उधर रांची में लालू यादव की जमानत याचिका पर सुनवाई झारखण्ड हाईकोर्ट ने टाल दी। जन्मदिन किरकिरा हो गया। कहावत भी है कि विपत्तियां झुण्ड में आती हैं।

नीतीश की ग्रहदशा कैसी रहेगी? भाग्यवान होंगे तो छींका फूटेगा। कितने माह मुख्यमंत्री वे रह पायेंगे? भाजपा कब तक कृपालु रहेगी? यदि हाँ, तो फिर क्यों?


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