तेजस्वी की सभा में भीड़ से "पल्टूचाचा" सकते में
बिहार विधानसभा चुनाव के रण में महारथी अपने पूरे दमखम के साथ डटे हैं। वातावरण में जैसे-जैसे ठंढ की आहट बढ़ती जा रही है, ठीक उसके उलट चुनावी पारा चढ़ता जा रहा है। आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव की सभाओं में उमड़ती भीड़ से विरोधियों में खलबली मची है। विशेष करके एनडीए के चेहरा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं।
अपनी सभाओं में तेजस्वी उन्हें "पल्टूचाचा" के नाम से सम्बोधित करते हैं। बिहार के "सुशासन बाबू" के पल्टूचाचा बनने की एक लम्बी कहानी है। उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव व कांग्रेस गठबंधन के साथ चुनाव लड़े थे। चुनाव में आरजेडी को जदयू से अधिक सीटें मिली थीं लेकिन समझौते की शर्तों के अनुसार नीतीश मुख्यमंत्री बने थे।
कुछ ही महीने बाद नीतीश भाजपा के रणनीतिकारों से सलाह लेना शुरू कर दिए। जाहिर है कि इसकी खबर मिलने पर लालू प्रसाद यादव ने नाराजगी व्यक्त की। उधर, उप मुख्यमंत्री तेजस्वी से भी उनकी खटपट शुरू हो गई। भाजपा तो यही चाहती थी और "सुशासन बाबू" भाजपा से हाथ मिलाकर पुन: मुख्यमंत्री बन गए। इसी के साथ बिहार की राजनीति में नीतिश "सुशासन बाबू" से पल्टूचाचा बन गए।
तेजस्वी ने उन पर "विश्वासघात" का आरोप लगाया और अब भी चुनावी सभाओं में वे उन्हें "पल्टूचाचा" ही कह रहे हैं। महागठबंधन के नेता तेजस्वी के इन आरोपों का जवाब नीतीश के पास नहीं है। उधर, भाजपा एलजेपी के नेता चिराग पासवान की पीठ थप-थपा करके नीतीश की मुश्किलें बढ़ा दी है। चिराग पासवान की पार्टी एनडीए से अलग चुनाव लड़ रही है। चिराग अपनी चुनावी सभाओं में बार-बार यह कह रहे हैं कि वह भाजपा के साथ हैं लेकिन नीतीश की कार्यप्रणाली के विरोध में हैं।
राजनीतिक दृष्टि से इसका क्या मतलब निकाला जाए ? स्पष्ट है कि बिहार के रण में चिराग पासवान बीजेपी के लिए भविष्य का मोहरा हैं। भाजपा चिराग के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना नीतीश कुमार पर साध रही है। चुनाव परिणाम आने पर यदि जदयू की सीटें कम आती हैं तो इसका असर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर भी पड़ेगा और यही भाजपा की रणनीति है। नीतीश के पीछे भाजपा ने चिराग को छोड़ दिया है।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा ने शिवसेना की अंगुली पकड़ करके अपनी जड़ें मजबूत की और जब पैर रखने की जगह मिल गई तो शिवसेना को आंखें तरेरने लगी। पहले भाजपा शिवसेना के नेता को अपना बड़ा भाई मानती थी और मौका मिलते ही खुद अपने को "बड़ा भाई" घोषित करके अपना मुख्यमंत्री भी बनवा ली। अब शिवसेना इस चालाकी को समझ गई है, इसलिए कांग्रेस व शरद पवार की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से हाथ मिलाकर उधव ठाकरे खुद मुख्यमंत्री बन गए हैं।
चुनाव बाद बिहार में भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। फिलहाल कोई नहीं बता सकता है कि बिहार की राजनीति में ऊंट किस करवट बैठेगा। इस चुनाव में नीतीश कुमार व चिराग पासवान के राजनीतिक कद का फैसला हो जाएगा। उधर, तेजस्वी ने जब से वामपंथी दल विशेष करके भाकपा (माले) से हाथ मिलाया है, तभी से भाजपा खेमे की बौखलाहट बढ़ गई है। अब तो भाजपा नेता भी इसकी अपनी सार्वजनिक सभाओं में चर्चा करने लगे हैं। इसी से स्पष्ट है कि तेजस्वी की रणनीति का निशाना सही जगह पर लग रहा है।
तेजस्वी की सभाओं में उमड़ी भीड़ किराए की भीड़ नहीं है। स्वेच्छा से लोग उनकी सभाओं में जा रहे हैं। अब भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं के बाद हवा का रुख बदलेगा और एनडीए मजबूत होगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या नरेंद्र मोदी का जादू बिहार की राजनीति में चलेगा ? इस चुनाव में इसका भी फैसला हो जाएगा। बिहार में तो लोग पिछले चुनाव में मोदी-नीतीश के बीच हुए सवाल-जवाब को भी चटखारे लेकर एक दूसरे को सुना रहे हैं।
चुनाव बाद राजनीतिक समीकरण चाहे जो बने लेकिन फिलहाल बिहार के रण में "सुशासन बाबू" चक्रव्यूह में फंस चुके हैं। एक तरफ वे तेजस्वी के निशाने पर हैं और दूसरी तरफ एनडीए के सहयोगी चिराग पासवान भी उन्हीं पर निशाना साध रहे हैं। नीतीश की नीतियों के खिलाफ जो असंतोष जनता में है, उससे बचने के लिए ही एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान को स्वतंत्र लड़ने के लिए बीजेपी ने छोड़ रखा है।
बिहार की राजनीति अनेक जातीय घरौंदे में बंटी है और यही कारण है कि कोई भी दल वहां अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगा। गठबंधन करके चुनाव लड़ना दलों की मजबूरी और समय की पुकार भी है। दलों पर जातीय समूहों का दबाव है। कई ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई से अधिक जातीय राजनीति का असर है। यही बिहार की राजनीति की वर्तमान त्रासदी है और राजनीतिक दल भी इसे हवा दे रहे हैं। बिहार की एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव..! मंच पर उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न लालटेन भी टंगी है। सभा में उमड़ी भीड़ देखिए।